आज श्री रामानॅदाचार्य की जयंती है

2017-01-19 00:00:00

¤†à¤œ जगत गुरु श्री स्वामी रामानन्दाचार्य जी की जयन्ती के अवसर पर आप सभी को बधाई हो जय गुरुदेव जय सीयाराम जय माराज सा जय द्वरिकाधीश स्वामी रामानंद को मध्यकालीन भक्ति आंदोलन का महान संत माना जाता है। उन्होंने रामभक्ति की धारा को समाज के निचले तबके तक पहुंचाया। वे पहले ऐसे आचार्य हुए जिन्होंने उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार किया। उनके बारे में प्रचलित कहावत है कि - द्वविड़ भक्ति उपजौ-लायो रामानंद।यानि उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार करने का श्रेय स्वामी रामानंद को जाता है। उन्होंने तत्कालीन समाज में ब्याप्त कुरीतियों जैसे छूयाछूत, ऊंच-नीच और जात-पात का विरोध किया। ॥ आरंभिक जीवन ॥ स्वामी रामानंद का जन्म प्रयाग(इलाहाबाद) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम सुशीला देवी और पिता का नाम पुण्य सदन शर्मा था। आरंभिक काल में हीं उन्होंने कई तरह के अलौकिक चमत्कार दिखाने शुरू किये। धार्मिक विचारों वाले उनके माता-पिता ने बालक रामानंद को शिक्षा पाने के लिए काशी के स्वामी राधवानंद के पास श्रीमठभेज दिया। श्रीमठ में रहते हुए उन्होंने वेद, पुराणों और दूसरे धर्मग्रंथों का अध्ययन किया और प्रकांड विद्वान बन गये।पंचगंगा घाट स्थित श्रीमठ में रहते हुए उन्होंने कठोर साधना की। उनके जन्म दिन को लेकर कई तरह की भ्रंतियां प्रचलित है लेकिन अधिकांश विद्वान मानते हैं कि स्वामीजी का जन्म 1400 ईस्वी में हुआ था। यानि आज से कोई सात सौ दस साल पहले. शिष्य परंपरा स्वामी रामानंद ने राम भक्ति का द्वार सबके लिए सुलभ कर दिया। उन्होंने अनंतानंद, भावानंद, पीपा, सेन, धन्ना, नाभा दास, नरहर्यानंद, सुखानंद, कबीर, रैदास, सुरसरी, पदमावतीजैसे बारह लोगों को अपना प्रमुख शिष्य बनाया, जिन्हेद्वादश महाभागवत के नाम से जाना जाता है। इनमें कबीर दास और रैदास आगे चलकर काफी ख्याति अर्जित किये। कबीर औऱ रविदास ने निर्गुण राम की उपासना की। इस तरह कहें तो स्वामी रामानंद ऐसे महान संत थे जिसकी छाया तले सगुण और निर्गुण दोनों तरह के संत-उपासक विश्राम पाते थे। जब समाज में चारो ओर आपसी कटूता और वैमनस्य का भाव भरा ङुआ था, वैसे समय में स्वामी रामानंद ने नारा दिया-जात-पात पूछे ना कोई-ङरि को भजै सो हरी का होई. उन्होंने सर्वे प्रपत्तेधिकारिणों मताः कà

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